भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु के वरिष्ठ नेता CP Radhakrishnan को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर अपनी गहरी राजनीतिक सोच का परिचय दिया है। जेपी नड्डा द्वारा की गई इस घोषणा ने साफ कर दिया कि यह सिर्फ उनकी वफादारी का इनाम नहीं, बल्कि दक्षिण भारत में बीजेपी की पकड़ मजबूत करने की रणनीति भी है। चार दशकों से सक्रिय राजनीति में रहने वाले राधाकृष्णन तमिलनाडु की राजनीति में सम्मानित चेहरा माने जाते हैं।
तमिलनाडु की राजनीति पर असर
तमिलनाडु में बीजेपी को अब तक बड़ी सफलता नहीं मिली है। ऐसे में CP Radhakrishnan का नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए सामने लाना बीजेपी की क्षेत्रीय राजनीति में पैठ बनाने की कोशिश है। अगर वे निर्वाचित होते हैं, तो वे उपराष्ट्रपति बनने वाले तमिलनाडु के तीसरे नेता होंगे।
विपक्षी खेमे में दरार की संभावना
इतिहास गवाह है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को लेकर विपक्ष में दरारें पड़ चुकी हैं। प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी के समय कई विपक्षी दलों ने क्रॉस वोटिंग की थी। इसी तरह रामनाथ कोविंद के नामांकन के समय जदयू ने विपक्ष में होते हुए भी एनडीए का समर्थन किया था।
द्रमुक के सामने धर्मसंकट
तमिलनाडु की सबसे बड़ी पार्टी द्रमुक (DMK) के सामने मुश्किल स्थिति है। पार्टी प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने राधाकृष्णन को एक “स्वागत योग्य चेहरा” बताया है, लेकिन उन्होंने साफ किया कि अंतिम फैसला विपक्षी गठबंधन ही करेगा। यह धर्मसंकट और गहरा है क्योंकि राधाकृष्णन तमिल हैं और राज्य की जनता इसे भावनात्मक रूप से देख सकती है।
पिछली बार का अनुभव और इस बार की स्थिति
पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को भारी बहुमत मिला था, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने मतदान से दूरी बना ली थी। इस बार एनडीए के पास पहले से 422 वोट हैं और संभावना है कि बीजेडी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस जैसे दल भी उनका समर्थन करेंगे। ऐसे में विपक्षी दलों की एकता सबसे बड़ी चुनौती होगी।