लोकसभा में बुधवार को विपक्ष और सरकार के बीच जमकर बहस देखने को मिली। मुद्दा था तीन अहम बिल—Constitution (One Hundred And Thirtieth Amendment) Bill, 2025, Government of Union Territories (Amendment) Bill, 2025 और Jammu and Kashmir Reorganisation (Amendment) Bill, 2025। इन बिलों के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्य मंत्रियों को, अगर किसी गंभीर आरोप में गिरफ्तार कर 30 दिन तक जेल में रखा जाता है, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा या 31वें दिन पर अपने पद से स्वतः हटा दिया जाएगा।
वेणुगोपाल का सवाल और अमित शाह का जवाब
कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान और संघीय ढांचे को कमजोर करने की कोशिश है। उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह से सवाल किया—
“जब आप गुजरात के गृहमंत्री थे और गिरफ्तार हुए थे, तब क्या आपने नैतिकता निभाई थी?”
इस पर शाह ने तीखे अंदाज में पलटवार किया। उन्होंने कहा—
“मुझ पर झूठे आरोप लगे थे, लेकिन मैंने नैतिकता का पालन करते हुए न सिर्फ इस्तीफा दिया बल्कि सभी आरोपों से बरी होने तक कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया। मैं गिरफ्तार होने से पहले ही पद से हट गया था।”
विपक्ष का आरोप: लोकतंत्र पर हमला
कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने इन बिलों को “तानाशाही” करार दिया। उन्होंने कहा कि यह संविधान और लोकतंत्र दोनों के खिलाफ है। उनका कहना था—
“कल को किसी भी मुख्यमंत्री पर झूठा केस लगाकर 30 दिन जेल भेज दिया जाए और वह अपने पद से हट जाए, यह पूरी तरह असंवैधानिक है।”
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी सरकार पर हमला बोला और कहा—
“यह बिल देश को पुलिस स्टेट बनाने की साजिश है। बीजेपी यह भूल रही है कि सत्ता हमेशा के लिए नहीं होती।”
सरकार का दावा: राजनीति में नैतिकता ज़रूरी
सरकार का कहना है कि ये बिल राजनीति में स्वच्छता और नैतिकता लाने के लिए लाए गए हैं। अमित शाह ने कहा कि देश को ऐसे नेताओं की ज़रूरत नहीं है जो गंभीर आरोपों में जेल में रहकर भी संवैधानिक पद पर बने रहें।
आगे क्या होगा?
फिलहाल इन बिलों को संसदीय संयुक्त समिति (JPC) के पास भेजा गया है। समिति को अगली संसदीय सत्र की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी। विपक्ष को भी अपने सुझाव और आपत्तियाँ रखने का अवसर मिलेगा।