Atul Subhash Case: बेंगलुरु में AI इंजीनियर अतुल सुभाष के पत्नी की प्रताड़ना से तंग आकर खुदकुशी मामले के बीच एक मामले की सुनवाई में पत्नी को भरण पोषण के मसले पर कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण की रकम इतनी होनी चाहिए कि पति पर भार न पड़े, लेकिन पत्नी को भी ठीक से जीवन जीने की व्यवस्था हो. साथ ही कोर्ट ने कहा कि कोई ऐसा फिक्स नियम नहीं है जो ज्यों का त्यों लागू कर दिया जाए. कोर्ट ने कहा है कि क्रूरता कानून ( cruelty law) का गलत फायदा उठाने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि इस मामले में अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र के अनुसार, दंपति का विवाह ‘पूरी तरह से टूट चुका था’, लेकिन पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता देने की जरूरत थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले (Kiran Jyot Maini v Anish Pramod Patel) का जिक्र करते हुए कहा कि ‘जैसा हमने किरण के मामले में कहा था, स्थायी भरण-पोषण की रकम ऐसी होनी चाहिए कि वह पति को सजा देने वाली नहीं हो, बल्कि पत्नी को एक अच्छा जीवनस्तर देने वाली हो.
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि पत्नी को भरण-पोषण की रकम इतनी मिलनी चाहिए कि वह सम्मान के साथ जीवन जी सके, लेकिन यह रकम इतनी भी न हो कि पति को आर्थिक दिक्कत होने लगे. भरण-पोषण का उद्देश्य यह है कि पत्नी के ‘जीवनस्तर’ में गिरावट न आए और वह ठीक से अपनी जिंदगी जी सके.
इन 8 बातों के आधार पर पत्नी गुजारा भत्ता का फैसला लिया जाना जरूरी:
1. पति और पत्नी, दोनों, पक्षों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाए.
2. पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित जरूरतें क्या हैं, किस प्रकार की हैं, यह देखा जाए.
3. दोनों पक्षों की व्यक्तिगत योग्यताएं और रोजगार (खाने कमाने) का क्या स्टेटस है, यानी पति और पत्नी की शिक्षा और नौकरी की स्थिति का भी ध्यान रखा जाए.
4. ऐलिमनी के आवेदक के पास स्वतंत्र आय या संपत्ति है या नहीं, उसे देखा जाए.
5. ससुराल यानी शादी के बाद वाले घर में पत्नी के लाइफ स्टैंडर्ड को ध्यान में रखा जाए.
6. परिवार की जिम्मेदारियों के लिए पत्नी ने अगर नौकरी या करियर छोड़ा है, तो उसे ध्यान में रखा जाए.
7. यदि पत्नी काम नहीं कर रही है, तो उसके मुकदमे के खर्चे वाजिब होने चाहिए।
8. पति की आर्थिक स्थिति, उसकी आय, अन्य भरण-पोषण की जिम्मेदारियां और कर्ज का ध्यान रखा जाए.