मैं कड़क प्रिंसिपल रही…5 घंटे मुझे डिजिटल अरेस्ट किया: अफसोस! शौहर को भी चुप रहने को कहती रही, दौड़कर बैंक गई, 5 लाख ट्रांसफर किए

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‘दिल्ली-हाईवे पर हार्डकोर क्रिमिनल्स के साथ तुम्हारा बेटा पकड़ा गया है। बेटा 25 साल के लिए जेल जाएगा। क्या चाहती हो, उसका एनकाउंटर कर दें।’

कांपती हुई आवाज के साथ मां यूसुफा पूछती हैं- कौन बोल रहा? जवाब मिलता है- दिल्ली पुलिस हेडक्वार्टर से बोल रहे हैं। यहां तुम्हारा बेटा रो रहा है, बचाना चाहती हो, तो पेनाल्टी भर दो। किसी से कोई बात नहीं करना। नहीं तो तुम्हारे बेटे की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।

फोन पर बेटा रो रहा था…धमकाया- जिंदगी खराब कर देंगे

ये सब डराने वाली बातें प्रयागराज में रिटायर्ड प्रिंसिपल यूसुफा नफीस के कानों में पड़ रही थी। यह कॉल उनके शौहर अकील अहमद फारुकी के मोबाइल पर आई थी। वह ITI रिटायर्ड अकाउंट अफसर हैं। वह उस वक्त नहाने गए थे। मोबाइल अपनी बीवी को दे दिया था।

घटना 15 नवंबर की है। जिस नंबर से कॉल आई थी, उस पर पुलिस अधिकारी की तस्वीर लगी थी। यूसुफा इतना ज्यादा डर चुकी थीं कि जब अकील अहमद कमरे में आए, तो उन्होंने उनको कुछ नहीं बताया।

मोबाइल ऐप से 95 हजार रुपए जालसाजों के बताए गए खाते में डिपॉजिट कर दिया। इसके बाद भी ठग उन्हें डराते रहे। बैक ग्राउंड में उन्हें बेटे के रोने की आवाज भी सुनाई गई। धमकाया गया कि मीडिया वाले बाहर ही हैं, खबर आते ही हंगामा हो जाएगा। यूसुफा इतना घबरा चुकी थीं कि शौहर को भी कुछ नहीं बता पा रही थीं।

भास्कर टीम डिजिटल अरेस्ट में दहशत के उन 5 घंटों को समझने के लिए युसूफा के घर पहुंची, पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

युसूफा ने कहा – मैं तेज तर्रार हूं, सब डरते हैं। मगर मेरे साथ ही ऐसा हुआ कि कुछ बता भी नहीं सकती हूं।

अब पढ़िए कैसे ठगो ने रिटायर्ड प्रिंसिपल को घर से बैंक तक पहुंचा दिया…

जालसाज ने कहा- बैंक जाकर RTGS करो

युसूफा बताती है कि जालसाजों ने 1–1 करके सभी बैंक अकाउंट की डिटेल पूछ ली। हिदायत दी कि घर से लेकर बैंक तक यह सब बातें किसी को नहीं बतानी हैं। यूसुफा मोबाइल ऐप से अब पैसा ट्रांसफर नहीं कर पा रही थीं। तब जालसाज ने ही उसको कहा कि बैंक जाकर RTGS करो जाकर। मैं इतना परेशान हो गई थी कि कान में मोबाइल लगाए करेली के अपने घर के बाहर तक गईं। पैदल–पैदल ही चल दी। फिर ई–रिक्शा करके PNB बैंक तक पहुंची।

मैंने अपने शौहर को कुछ नहीं बताया। वह पूछ भी रहे थे तो उन्हें इशारे में चुप रहने को कहा। मन में सिर्फ यही सोच रही थी कि मेरा बेटा कैसा होगा। उसको जेल में रखा होगा। कही उसको मारपीट तो नहीं रहे होंगे। यही ख्याल मेरे मन में चल रहे थे।

फार्म गलत भरती रहीं, मैंनेजर ने पूछा- आप घबराई हुई क्यों हैं

वह आगे बताती हैं- ई-रिक्शा से बैंक पहुंचने के बाद मैं इतना घबरा चुकी थी कि बार–बार RTGS फार्म भरने में गलती करती रही। मैनेजर ने भी पूछा कि पेंशन अकाउंट से इतना पैसा क्यों विद ड्रा कर रही हैं। मगर मैंने कुछ बताया नहीं।

इस दौरान खुद को दिल्ली पुलिस का अफसर बताने वाला शख्स ऑनलाइन था। वह लगातार मुझे धमकाता चल रहा था कि अपने बेटे की फिक्र करो। देर हो गई तो बेटा जेल जाएगा। आखिरकार मैंने 5 लाख रुपए और ट्रांसफर कर दिए। इसके बाद भी जालसाजों ने मुझे डिजिटल अरेस्ट ही रखा।

युसूफा अपने मोबाइल पर आई कॉल की डिटेल दिखाती रही।

युसूफा अपने मोबाइल पर आई कॉल की डिटेल दिखाती रही।

मैंने कहा – अब रुपए नहीं, उसने कहा- घर जाकर और भेजो

अब जालसाजों के पास 5.95 लाख रुपए पहुंच चुके थे। इसके बाद और रुपयों की डिमांड होने लगी। सुबह 11 बजे से लेकर दोपहर 2 बजे तक युसूफा अकेले करेली से मीरापुर के बैंक तक कान में मोबाइल लगाए भटकती रहीं। जब जालसाज ने कहा– अफसरों तक रुपए पहुंचाने होंगे, कुछ और डिपॉजिट करो। तब युसूफा ने कहा- अब मेरे अकाउंट में रुपए ही नहीं हैं। उन्होंने कहा- मैं घर जाती हूं। शौहर से कुछ ट्रांसफर करवाती हूं। प्लीज मेरे बेटे को कुछ नहीं होने देना।

इसके बाद जब युसूफा घर वापस पहुंची, तब उनके चेहरे के हावभाव को देखकर शौहर को कुछ गलत होने का एहसास हुआ। इसके बाद पूरी कहानी खुलती चली गई। ठगी का अंदेशा होते ही शौहर भागे–भागे बैंक पहुंचे। मैनेजर को पूरी कहानी सुनाई, स्टॉप पेमेंट लगाया, मगर पैसा पहले ही विद ड्रा हो चुका था।

इसके बाद मैंने अपने दोनों बेटों से बात की। मेरा एक बेटा दुबई में दूसरा दिल्ली में जॉब करता है। उनसे बात होने के बाद मेरे कलेजे को ठंड पहुंची। हम लोग इतना घबरा चुके थे कि यह सब होने के 5 दिन बाद FIR दर्ज कराने पहुंची।

युसूफा कहती है कि हम इतना डर गए कि 5 दिन बाद थाने गए। समझ ही नहीं आया कि करें क्या।

युसूफा कहती है कि हम इतना डर गए कि 5 दिन बाद थाने गए। समझ ही नहीं आया कि करें क्या।

पूर्व प्रिंसिपल बोलीं– मैं हमेशा कार से चली, उस दिन पैदल ही दौड़ रही थी- दैनिक भास्कर

टीम ने यूसुफा के घर पर पूरा वाकया समझा। यूसुफा नफीस कहती हैं- मैं पूरी उम्र हमेशा कार से ही चली हूं, लेकिन ऐसे हालातों में जकड़ गई थी कि पैदल ही घर से निकल गई। रास्ते में जितने भी जानने वाले मिले सबको मुंह पर उंगली रख चुप कराते हुए आगे बढ़ गईं। मेरे पास चेंज रुपए नहीं थे, रिक्शे वाले को 100 रुपए दे दिए।

वह यह सब बताते हुए रो पड़ीं। उन्होंने कहा- प्रिंसिपल रहते हुए सब मुझसे डरते थे। बहुत तेज तर्रार थी। स्टूडेंट डरते थे। मुझे अफसोस है कि बेटे की वजह से मैं उन्हें समझ न सकी। मेरी पेंशन के रुपए चले गए, कोई बात नहीं, लेकिन मैं डर गई…दबाव में आ गई, यह गलत हो गया।

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