स्वामी प्रसाद मौर्य ने की नई पार्टी की घोषणा: राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी का झंडा किया लांच, दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में रैली को करेंगे संबोधित

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लोकसभा चुनाव 2024 से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य अब अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी से पूरी तरह अलग हो गए हैं। उन्होंने नई पार्टी को पुनर्गठित कर दिया है। इस पार्टी का नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी है। सोमवार को सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने पार्टी का झंडा लॉन्च कर दिया है। जोकि नीले, लाल और हरे रंग को मिलाकर बनाया गया है।

समाजवादी पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य नई पार्टी का गठन करेंगे. इसके लिए उन्होंने नई पार्टी का नाम व झंडा लॉन्च कर दिया है. वह 22 फरवरी को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में रैली को संबोधित कर पार्टी की कार्यकारिणी का ऐलान करेंगे. नई पार्टी का नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी (RSSP) होगा. इसके झंडे में नीला, लाल और हरा रंग होगा. हालांकि, इस बीच समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी उन्हें मनाने के लिए उनके घर पहुंच गए हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य

स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीते दिनों समाजवादी पार्टी में उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने अखिलेश यादव को लिखे गए अपने पत्र में कहा था कि डॉ. भीमराव आंबेडकर और डॉ. राममनोहर लोहिया समेत सामाजिक न्याय के पक्षधर महापुरुषों ने 85 बनाम 15 का नारा दिया था. लेकिन समाजवादी पार्टी इस नारे को लगातार निष्प्रभावी कर रही है. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बड़ी संख्या में प्रत्याशियों का पर्चा व सिंबल दाखिल होने के बाद अचानक प्रत्याशियों को बदला गया. इसके बावजूद वह पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहे.

स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा पत्र

जब से मैं समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ. तब से लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की. सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था- पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है. हमारे महापुरुषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी. भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” की बात की. तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि “सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावै सौ में साठ”. इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महा-नायक काशीराम साहब का नारा था- “85 बनाम 15 का”. 2022 विधानसभा चुनाव में अचानक प्रत्याशियों के बदलने के बावजूद पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहा. उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां 2017 में सिर्फ 45 विधायक थे. ये संख्या बढ़कर 110 हो गई. बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया. इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद. पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में मैंने आपके पास एक सुझाव रखा. मैंने कहा कि बेरोजगारी और महंगाई, किसानों की समस्याओं और लोकतंत्र संविधान को बचाने के लिए हमें रथ यात्रा निकालनी चाहिए. जिस पर आपने सहमति जताई. कहा था कि होली के बाद इस यात्रा को निकाला जाएगा. आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया. मैंने दोबारा कहना उचित नहीं समझा. पार्टी का जनाधार बढ़ाना मैंने अपने तौर-तरीके से जारी रखा. जो आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों को जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपा मय हो गए थे. उनके सम्मान और स्वाभिमान को जगाकर वापस लाने की कोशिश की. मगर पार्टी के ही कुछ छुटभैया और कुछ बड़े नेताओं ने “मौर्य जी का निजी बयान है” कहकर इस धार को कुंठित करने की कोशिश की.

फिर भी मैंने अन्यथा नहीं लिया. मैंने ढोंग-ढकोसला, पाखंड और आडंबर पर प्रहार किया. इसे भी पार्टी के कुछ ने मेरा निजी बयान बताया. मुझे इसका भी मलाल नहीं. इसके बाद भी मैं लोगों को सपा के साथ जोड़ने के अभियान में लगा रहा. इसी अभियान के दौरान मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने समेत 24 धमकियां मिलीं. हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख की सुपारी भी दी गई. कई बार जानलेवा हमले भी हुए. यह बात दीगर है कि हर बार मैं बाल-बाल बचता चला गया. मेरे खिलाफ कई FIR भी दर्ज कराई गईं. लेकिन मैं अपनी सुरक्षा की बिना चिंता अभियान में लगा रहा. हैरानी तो तब हुई, जब पार्टी के वरिष्ठ नेता चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान कह करके कार्यकर्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश की.

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मैं नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव मैं हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है. पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है. दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों का रुझान सपा की तरफ बढ़ा है. बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास और वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो में समझता हूं ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है. इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से मैं त्यागपत्र दे रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार करें. पद के बिना भी पार्टी को सशक्त बनाने के लिए में तत्पर रहूंगा. आप द्वारा दिए गये सम्मान, स्नेह व प्यार के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

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