पूर्वांचल के माफिया मुख्तार अंसारी कार्डियक अरेस्ट से मौत हो चुकी है। जरायम के रास्ते राजनीति में कदम रखने वाले मुख्तार का सियासी रसूख बहुत तेजी से बढ़ा। मुख्तार अंसारी से माफिया मुख्तार बनने के बाद 1996 में बीएसपी के टिकट पर पहली बार विधायक बने मुख्तार बहुत जल्द यूपी की राजनीति का एक मजबूत सिरा बन गए।
1986 में पहली बार मुख्तार का नाम सरकारी फाइलों में दर्ज हुआ था… फिर एक के बाद एक 65 मुकदमे दर्ज हो गए। 50 से ज्यादा मुकदमों में अभी भी ट्रायल चल रहा था और 8 मामलों में सजा भी सुनाई जा चुकी थी। बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी की मौत के साथ ही उसके लाइफ की फाइल हमेशा के लिए बंद हो गई।
1986 में पहली बार मुख्तार अंसारी का नाम सरकारी फाइलों में दर्ज हुआ
90 के दशक का वह दौर पूर्वांचल के लोग नहीं भूलते, जब गैंगवार की छिड़ती थी। सरकारी ठेकों से शुरू हुई दबंगई कब संगठित गैंग बन गई पता ही नहीं चला। मुख्तार तब बड़ा नाम बन चुका था। 1996 में जब पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने मुख्तार को टिकट दिया तो मऊ में पोस्टर लगे थे, जिस पर लिखा था- शेर-ए-मऊ।
मुस्लिम बाहुल्य सीट और मुख्तार का दबदबा और दरबार में बदल गया, जहां बड़े-बड़े अधिकारी, नेता हाजिरी लगाने लगे। मायावती के शासनकाल में मुख्तार यूपी का सबसे चर्चित चेहरा बन गया। मुख्तार ने मऊ को राजनीति का सेंटर बनाया और यहीं से 2002, 2007, 2012 और 2017 में लगातार विधायक बनता रहा।
इस बीच प्रदेश की राजनीति ने कई दौर देखे। मायावती के बाद मुख्तार ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा और सियासी हनक को बनाए रखा। सपा का दौर खत्म होने के बाद मुख्तार की रफ्तार थमने लगी। इससे पहले 2009 में उसने वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गया।
2009 चुनाव के ठीक एक साल बाद बीएसपी ने मुख्तार को पार्टी से निष्कासित कर दिया। इसके बाद अंसारी ने कौमी एकता दल नाम से पार्टी बनाई और तीन बार अलग-अलग जेलों में रहते हुए चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
मुख़्तार के बड़े भाई अफ़जाल अंसारी भी गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा से लगतार 5 बार (1985 से 1996 तक) विधायक रह चुके हैं। अब वे लोकसभा चुनाव 2024 में गाजीपुर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
पूर्वांचल की 6 लोकसभा-42 विधानसभा सीटों पर अंसारी परिवार का असर
यूपी के गाजीपुर की आसपास लगभग 6 लोकसभा सीटों सहित 42 विधानसभा सीटों पर मुख्तार अंसारी का खास प्रभाव रहा है। पूर्वांचल में मुख्तार की प्रभाव वाली 6 लोकसभा सीट हैं जिसमें गाजीपुर, मऊ, बलिया, जौनपुर और वाराणसी शामिल है।
6 लोकसभा के अलावा 42 विधानसभाओं की बात करें तो मऊ जिले की 8 विधनासभा, जौनपुर जनपद की 9 विधानसभा, बलिया की 7 विधानसभा, आजमगढ़ की 8, वाराणसी की 5 ,गाजीपुर की 5 विधानसभा सीटों मुख्तार का अच्छा खासा प्रभाव रहा है।
जब मुख्तार की वजह से मुलायम परिवार में हो गई कलह
राजनैतिक जानकार बताते हैं मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे मुख्तार की वजह से मुलायम परिवार में कलह हुई थी। मुख्तार की पार्टी कौमी एकता दल और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को लेकर अखिलेश और शिवपाल के बीच दूरियां बढ़ गई थीं। लेकिन 2017 में कौमी एकता दल का बसपा में विलय हो गया और अफजाल 2019 में बसपा के टिकट पर गाजीपुर से सांसद बने।
चर्चित सच्चिदानंद राय हत्याकांड ने मुख्तार को बनाया डॉन
सरकारी फाइलों के मुताबिक 1986 में मुख्तार के खिलाफ सच्चिदानंद राय की हत्या का मामला दर्ज हुआ। इसके बाद उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में करीब 30 और मुकदमे दर्ज हुए, जिसमें 15 FIR तो सिर्फ हत्या की दर्ज हुई थी। महाराष्ट्र और यूपी में दर्ज अधिकतर मामलों में गवाह पलट गए या साक्ष्य नहीं मिल पाए और मुकदमे कोर्ट से खारिज होते गए।
एक वक्त में मुख्तार पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट) और गैंगस्टर ऐक्ट के तहत 30 से ज्यादा मुकदमें दर्ज थे। मुख्तार पर कुल 65 मुकदमे दर्ज किए गए जिनमें 8 में उसे सजा भी हो चुकी थी। जबकि 54 मुकदमों का ट्रायल चल रहा था। वह पिछले 18 साल से जेल में बंद चल रहा था।
सिटिंग विधायक पर हुई थी 400 राउंड से ज्यादा फायरिंग
मुख्तार अंसारी की जुर्म और रसूख के बीच राजनीति की दीवार ढाल की तरह थी। बहुचर्चित कृष्णानंद राय हत्याकांड ने 2002 में मऊ में मुख्तार की राजनैतिक हैसियत को चुनौती दी और विधानसभा चुनाव लड़कर बड़ी जीत दर्ज की। यही बात डॉन को खल गई और फिर मुख्तार और कृष्णानंद राय की अदावत गैंगवार जैसी बन गई।
फिर एक दिन कार्यक्रम से लौट रहे कृष्णानंद राय के काफिले पर घात लगाकर फायरिंग शुरू कर दी गई। करीब 400 से ज्यादा राउंड फायरिंग से पूरा इलाका हिल गया था। एके-47 से हुए इस गोलीकांड की दहशत पूरे प्रदेश ने महसूस की। आलम यह था कि किसी की बॉडी से 60 गोलियां तो किसी की बॉडी से 100 गोलियां निकली थीं।
सिटिंग विधायक की हत्या में मुख्तार गैंग का नाम आया और मऊ पर फिर से अंसारी परिवार का कब्जा हो गया। इसके अलावा भी मुख्तार के खौफ और दहशत की कहानी यही नहीं रुकती।
इससे पहले मन्ना हत्याकांड के गवाह रामचंद्र मौर्य की हत्या, मऊ में ए श्रेणी के ठेकेदार मन्ना सिंह हत्याकांड, 1996 में गाजीपुर के एसपी शंकर जायसवाल पर जानलेवा हमला, 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला कारोबारी रुंगटा का अपहरण इन सब मामलों में मुख्तार गैंग का नाम आया। हैरानी की बात तो यह है जेल में रहते हुए मुख्तार अंसारी पर सात मामले दर्ज हुए।
वाराणसी में अवधेश राय हत्याकांड औ बृजेश सिंह से अदावत
मुख्तार अंसारी गैंग और बृजेश सिंह गैंग के बीच की अदावत ने पूर्वांचल को दो दशक तक खौफ का वह आलम दिया, जिसे याद करके लोग आज भी सिहर जाते हैं। इसी गैंगवार का नतीजा वाराणसी का अवधेश राय हत्याकांड है। वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और वाराणसी से चुनाव लड़ रहे अजय राय के भाई थे, अवधेश राय जिनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
मुख्तार के जुर्म की दांस्ता में वाराणसी में अवधेश राय हत्याकांड की चर्चा सबसे ऊपर होती है। कांग्रेस नेता अवधेश राय की 3 अगस्त 1991 को हत्या कर दी गई थी। 33 साल पहले हुए हत्याकांड ने यूपी में दहशत पैदा कर दी थी और मुख्य आरोपी के रूप में मुख्तार अंसारी पर मामला दर्ज हुआ था।

यह घटना वाराणसी के चेतगंज थाना क्षेत्र के लहुरावी इलाके में हुई थी। 3 अगस्त की रात को कांग्रेस नेता अवधेश राय अपने भाई अजय राय के साथ घर के बाहर खड़े थे। किसी बात पर चर्चा चल ही रही थी कि तेज रफ्तार वैन वहां आई, उससे उतरे कुछ बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी।
उस फायरिंग में अवधेश राय मारे गए। हत्याकांड के तुरंत बाद कांग्रेस नेता के भाई अजय राय ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई और आरोप मुख्तार अंसारी पर लगाया। माना जाता था कि अवधेश राय बृजेश सिंह के खास थे जिसकी वजह से मुख्तार चिढ़ा हुआ था।
अवधेश राय हत्याकांड के पीछे चंदासी कोयला मंडी की वसूली बताई जाती है। पहले से नाराजगी और दुश्मनी होने के कारण मौका पाते ही मुख्तार ने अवधेश राय का काम तमाम कर दिया। इस मामले में मुख्तार को उम्र कैद की सजा हुई थी।