‘नेशनल शूटिंग चैम्पियनशिप में मनु भाकर मेडल नही जीत पाई और उसका स्कोर भी कम आया। वो घर लौटी तो थोड़ा अपसेट थी। बोले अब पिस्टल नही छूना। इस पर मैंने उसका मनोबल नही टूटने दिया और उसे सख्ती से कह दिया प्रैक्टिस एक भी दिन बंद नही होगी।’
8 साल की उम्र से दीपिका रेंज पर जा रहीं और उन्हें देखकर मैंने भी नेशनल चैम्पियनशिप में हाथ आजमाया। जीता नही पर खेला जरूर। गर्व है बेटी ने नाम रौशन किया। अब वो ओलिंपिक की तैयारी कर रही।’
भास्कर के अनुसार ये शब्द हैं काशी की मनु भाकर दीपिका पटेल के माता पिता के जिनकी शूटर बेटी अभी तक 21 नेशनल चैम्पियनशिप में हिस्सा ले चुकी हैं। वो नेशनल गेम्स 2015 की ब्रॉन्ज मेडल विजेता नेशनल चैंपियनशिप में 2 गोल्ड और 9 बार सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। दीपिका अगस्त में होनेवाली प्रतियोगिता की तैयारियों में लगी हुई हैं। दैनिक भास्कर ने उनके शूटिंग के शौक, उपलब्धियों और गेम में आए उतार चढ़ाव के बारे मैंने माता पिता और उनसे बातचीत की। पेशे से बिजनेसमैन प्रदीप पटेल ने भी अपनी बेटी का कदम कदम पर साथ दिया। बेटी का हौसला न टूटे इसलिए खुद भी शूटिंग की ।
अंक तालिका में भारत को फिसड्डी देख बनाया मन
वाराणसी के औसनगंज इलाके में रहनेवाले दिलीप पटेल की नीचीबाग में तिरपाल, दरी कंबल की दुकान है। प्रदीप ने बताया – हम सब छोटे थे। ओलिंपिक के समय जब अखबार पढ़ते तो उसमे भारत पदक तालिका में सबसे नीचे दिखाई देता। यह सोचकर मन में एक सवाल उठता था कि भारत कब पदक तालिका में ऊपर जाएगा। फिर जसपाल राणा की शूटिंग ने मुझे मोटिवेट किया और अपनेही घर से शुरुआत करने की ठानी।
बेटी को ले गया राइफल क्लब शूटिंग रेंज
प्रदीप ने बताया- मेरी सबसे बड़ी संतान मेरी बेटी है। मैंने पता किया तो पता चला रायफल क्लब में शूटिंग रेंज है । मैं उसे 8 साल की उम्र में शूटिंग रेंज पर लेकर पहुंचा और वहां मुरारी श्रीवास्तव और पंकज श्रीवास्तव जो रेंज देखते थे उनसे बिटिया को खेलने की बात कही जिसपर बिटिया को 5 राउंड गोली दी गई। इसमें उनकी 3 गोलियां टारगेट के आस पास लगी । इस पर उन्होंने कहा कि प्रैक्टिस करे तो यह आगे बढ़ सकती है। बस यहीं से बेटी का सफर शुरू हो गया।
बेटी के साथ मै भी बन गया शूटर
प्रदीप ने दीपिका के शूटर बनने के बारे में बताया- उन्होंने कहा – साल 1999 में जसपाल राणा की न्यूज पढ़कर मै भावुक हो गया। मेरे दोस्तों से ने मुझे रायफल क्लब के बारे में बताया और फिर मै दीपिका का हाथ पकड़कर शूटिंग रेंज पहुंच गया जहां चेक करने के दौरान ही दीपिका ने 50 परसेंट अच्छे मार्क्स लाए जिसपर उसकी ट्रेनिंग उसी दिन से शुरू हो गई क्लब से ही उसे ट्रेनिंग के लिए पिस्टल मिली और फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बेटी जब प्रैक्टिस कर रही थी तो एकदिन मेरा भी मन किया और मैंने भी 7 महीने बाद मैंने भी पिस्टल उठा ली।
मां संगीता पटेल ने बताई घर से लेकर फिल्ड तक की कहानी
हमेशा रेंज पर तैयार करके भेजा
संगीता पटेल, दीपिका की मां है। संगीता ग्रहणी हैं। संगीता ने बताया – ‘ जब पहली बार दीपिका अपने पापा के साथ शूटिंग रेंज गई तो वहां से वापसी के बाद काफी एक्साइटेड थी। उसके बाद मै ही उसके स्कूल से आने के उसका होमवर्क करवाती थी। इसके बाद उसे तैयार कर शूटिंग रेंज भेजती थी। पिता बिजनेसमैन हैं उसके बावजूद वो बिटिया के लिए समय निकालते थे।
मनु भाकर ने खाई थी पिस्टल न छूने की कसम, अब नेशनल चैंपियन
संगीता ने बताया – एक इवेंट खेलने गई थी दीपिका उसके लिए काफी मेहनत करके यहां गई थी पर उसका रैंक नहीं आया। इस प्रतियोगिता से निराश लौटी तो हमसे बोली की अब पिस्टल नहीं उठाएंगे। कोई अचीवमेंट नहीं हो रहा है। कोई मेडल नहीं आ रहे अब पिस्टल नहीं छूना है। इसपर मैंने पिस्टल वहां से हटाई नहीं। लेकिन ये कहती रही तो हमने इसे डांटा की क्यों नहीं खेलोगी। रोजाना प्रेक्टिस पर जाओगी। चाहे जो हो जाए।
दाल-चावल बना लेती है पर टेस्टी होता है
दीपिका बीएलडब्ल्यू में जॉब करती हैं। ऐसे में उन्हें शूटिंग और जॉब दोनों में सामंजस्य बैठना पड़ता है। संगीता पटेल ने बताया- दीपिका सिर्फ दाल, चावल और सब्जी बना लेती हैं। रसोई में हाथ बटाती हैं। वो प्रैक्टिस से आने के बाद कहती है काम को पर हम ही मना कर देते हैं क्योंकि जॉब से सीधे वो प्रैक्टिस पर चली जाती है और फिर थकान हो जाती है।
अब काशी की ‘मनु’ दीपिका पटेल की बात, जिनका लक्ष्य है ओलिंपिक
रायफल क्लब में 25 मीटर स्पोर्ट्स पिस्टल की प्रैक्टिस कर रहीं हैं। अगस्त में टूर्नामेंट है। हमने अपना परिचय दिया तो उन्होंने कहा 12 शॉट्स और फिर बात करती हुन। दो बार में उन्होंने 6-6 करके 12 शॉट अपने लक्ष्य पर मारे। इसके बाद हमसे मुखातिब हुई। दीपिका ने बताया- रोजाना यहां प्रैक्टिस करने आ रही हूं। जल्द ही इवेंट होने वाला है। इसलिए प्रैक्टिस कर रही हूं। हमने उनसे उनके खेल के जीवन, शूटिंग में दिलचस्पी और कितने इवेंट्स में कितने मैडल जीते हैं और लक्ष्य क्या है। इस पर उसे बात की…
पिता जसपाल राणा के बड़े फैन थे
दीपिका ने बताया- पिता जसपाल राणा के बड़े फैन थे। 1995 में कॉमनवेल्थ गेम्स में जसपाल राणा ने 8 स्वर्ण पदक पर निशाना लगाया था। अटलांटा ओलिंपिक में 600 के मुकाबले उनके 535 अंक आए थे जिससे वो ओलिंपिक में पदक से दूर हो गए थे। उस दिन मेरे पिताजी बहुत रोए थे। उन्होंने कहा था देश में कभी स्वर्ण नहीं आएगा क्या। उसके बाद मेरी ट्रेनिंग शुरू हो गई। साल 2008 में मैंने पिस्टल उठा ली। तब से आज तक वो सफर चल रहा है।
10 मीटर एयर पिस्टल और 25 मीटर स्पोर्ट्स पिस्टल का इवेंट
दीपिका ने बताया कि वो 10 मीटर एयर पिस्टल और 25 मीटर स्पोर्ट्स पिस्टल का इवेंट खेलती हैं। इसमें अभी तक 20 नेशनल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी हैं। इसके अलावा यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स में 10 मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड मैडल जीता था। वो मेरी सबसे बड़ी अचीवमेंट थी। दीपिका ने बताया वो दो बार नेशनल में सेलेक्ट नहीं हो पाई लेकिन मैंने प्रयास किया।
घर वालों ने सपोर्ट किया तो बढ़ पाई आगे
दीपिका ने बताया- अक्सर ऐसा हुआ की इवेंट में जाने के पैसे नहीं थे। इस पर लोगों ने मदद की। पापा ने किसी भी तरह से मुझे भेजा। लेकिन दोहा में होने वाले गेम्स में सेलेक्शन होने के बाद सरकार ने जाने का फंड देने से मना कर दिया था। इसपर कई लोग गए पर कई लोग नहीं जा पाए उसमे मै भी थी। इस दिन मनोबल टूट गया पर फिर परिजनों ने हौसले को उड़ान दी है।
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मां और पिता ने हमेशा किया सपोर्ट
दीपिका ने बताया- कोई भी मुश्किल घड़ी आयी तो पिता जी और मां ने समझाया। जैसे में दोहा न जा पाने पर टूट गई थी। मेरी मां ने मुझे सम्भाला और इस मुकाम तक पहुंचाया। मां ने कहा कोशिश करो आगे बढ़ो फिर सेलेक्शन हो जाएगा। इसके बाद फिर सेलेक्शन हो गए। कई बार ऐसी परिस्थिति आयी की पैसे नहीं थे और इवेंट में हिस्सा नहीं ले पाई पर पीछे मुड़कर नहीं देखने दिया पिता जी ने हमेशा सपोर्ट किया।