अमित शाह से माफी मंगवाने के लिए बसपा 8 साल बाद उतरेगी सड़क पर

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डॉक्टर भीमराव अंबेडकर पर गृहमंत्री अमित शाह के बयान के बाद बसपा ने पूरे देश में आंदोलन करने का ऐलान किया है। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि 24 दिसंबर को पूरे देश में जिला मुख्यालय पर कार्यकर्ता प्रदर्शन करेंगे। अमित शाह से माफी की मांग की जाएगी।

मायावती के ऐलान के बाद लंबे समय बाद बसपा कार्यकर्ता देश स्तर पर सड़क पर उतरेंगे। इससे पहले जुलाई 2016 में बसपा कार्यकर्ता पूरे देश में सड़कों पर उतरे थे। तब मौजूदा परिवहन राज्य मंत्री दयाशंकर सिंह ने मायावती को लेकर विवादित बयान दिया था।

मायावती ने अमित शाह के अंबेडकर पर बयान को लेकर की थी आलोचना

उस दौरान दयाशंकर से माफी मांगने की बात को लेकर सड़क पर मायावती को छोड़ बसपा के करीब सभी बड़े नेता सड़कों पर उतरे थे। इसके बाद स्थिति यह बनी कि भाजपा ने दयाशंकर सिंह को 6 साल के लिए पार्टी से सस्पेंड कर दिया था। हालांकि 2 साल के अंदर ही उनकी घर वापसी भी हो गई थी।

अब बसपा का कार्यकर्ता एक बार फिर से सड़क पर उतरने जा रहा है। इस बार भी विवादित बयान का ही मामला है। लेकिन, इस बार दलितों के सबसे बड़े नायक बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का मामला है। ऐसे में बसपा के सड़क पर उतरने के कई मायने सामने आ रहे हैं।

दैनिक भास्कर के अनुसार जानते हैं बीएसपी कॉडर कब-कब सड़क पर उतरा

1- 21 जुलाई, 2016 को पूरे देश में हुआ था प्रदर्शन भाजपा नेता दयाशंकर ने 20 जुलाई, 2016 को मऊ में मीडिया से बात करते हुए मायावती को लेकर विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि मायावती जिस तरह से मोलभाव कर रही हैं, इस तरह एक वेश्या भी अपने पेशे को लेकर नहीं करती। मायावती जो टिकट 1 करोड़ का बेचती हैं, वही टिकट अगर कोई 2 करोड़ का चाहे तो उसे दे देती हैं।

दयाशंकर के इस बयान के बाद 21 जुलाई को पूरे देश में बसपा कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए थे। उस समय के बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के नेतृत्व में लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर हजारों बसपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया था। इसके बाद दयाशंकर को पार्टी से निकाल दिया गया था।

हालांकि, उस दौरान बसपा नेताओं ने दयाशंकर की बेटी को लेकर भी विवादित नारे लगाए थे। इसका दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाती सिंह (अब तलाक हो गया है) ने कड़ा प्रतिरोध किया था। भाजपा ने नारा दिया था ‘बेटी के सम्मान में बीजेपी मैदान में’। यहीं से स्वाती सिंह का राजनीतिक करियर चमक गया था। साल 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी, तो उनको राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के तौर पर मंडी परिषद जैसा विभाग मिल गया।

2- मायावती खुद पहुंच गई थीं सहारनपुर के गांव मई, 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलित बनाम ठाकुर का मामला हो गया था। इसमें 25 झोपड़ियों को जला दिया गया था। मामले की आंच प्रदेश की राजधानी तक पहुंची। 23 मई, 2017 को खुद मायावती मौके पर पहुंच गई थीं। हालांकि, तब भी मायावती के हेलिकॉप्टर को वहां उतरने की इजाजत नहीं मिली थी।

उसके बाद सड़क मार्ग से पहुंचकर मायावती ने एक रैदास मंदिर में अपनी बात रखी थी। इस मामले को लेकर यूपी में बसपा और भाजपा लंबे समय बाद आमने-सामने आ गई थी। यहां तक कि तब सतीश मिश्रा, लालजी वर्मा समेत कई बसपा नेताओं ने सीएम योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की थी। यह वही समय था, जब बसपा विधानसभा चुनाव में सीट के मामले में 3 नंबर पर आ गई थी। उसके कुल 18 विधायक जीत पाए थे।

3- आरक्षण के सवाल पर भारत बंद का समर्थन 21 अगस्त, 2024 को देश के तमाम दलित संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया था। बसपा ने इस आंदोलन का समर्थन करते हुए सभी जिला मुख्यालय पर ज्ञापन देने का कार्यक्रम तय किया था। पार्टी की मुखिया मायावती ने इस संबंध में अपने सभी पदाधिकारियों को निर्देश भेजा था।

हालांकि, इस आंदोलन या प्रदर्शन की कॉल बसपा की नहीं थी। चूंकि देश में बड़े स्तर पर इस आंदोलन को समर्थन मिलने लगा था। डॉ. चंद्रशेखर की भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी, सपा के कुछ फ्रंटल संगठनों ने इसका समर्थन कर दिया था। उसके बाद बसपा भी आंदोलन में शामिल हुई थी। उसने हर जगह पर ज्ञापन दिया था।

तस्वीर 21 अगस्त, 2024 की है। लखनऊ में बसपा कार्यकर्ताओं ने गले में मटकी लटका कर विरोध प्रदर्शन किया था।
तस्वीर 21 अगस्त, 2024 की है। लखनऊ में बसपा कार्यकर्ताओं ने गले में मटकी लटका कर विरोध प्रदर्शन किया था।

सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने से बचती है बसपा करीब चार दशक से बसपा की राजनीति से जुड़े एडवोकेट राम आशीष राम का कहना है- पार्टी संस्थापक कांशीराम की राय थी कि सड़क पर आंदोलन करेंगे, तो मुकदमे होंगे। बवाल हो सकता है। ऐसे में तमाम कार्रवाई कार्यकर्ताओं पर हो सकती है।

दलित वर्ग से आने वाला बसपा का कॉडर आर्थिक तौर पर कमजोर था। ऐसे में मुकदमा लड़ने से लेकर पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए सड़क पर न उतर कर, पब्लिक मीटिंग का सहारा लिया जाता था।

1- 2012 के बाद गिरता गया बसपा का ग्राफ अपने स्थापना के समय से ही बसपा दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कभी कांग्रेस पार्टी का कोर बैंक रहा दलित वर्ग बसपा के साथ आ गया था। स्थिति यह बनी कि साल 1995 से 2007 के बीच 4 बार बसपा सरकार में आई। 3 बार गठबंधन और एक बार प्रचंड बहुमत के साथ बसपा की सरकार बनी। मायावती यूपी की पहली सीएम बनीं, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। लेकिन, साल 2012 चुनाव हारने के साथ स्थिति खराब होती गई।

ये बसपा के पिछले तीन बार के विधानसभा चुनाव के आंकड़े हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी शून्य सीट पर आ गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई, महज 19 सीटों पर जीत मिली। साल 2019 लोकसभा चुनाव अपने घोर विरोधी सपा के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन बहुत फायदा नहीं मिला। हालांकि शून्य सीट की संख्या 10 पहुंच गई। लेकिन, साल 2022 विधानसभा में महज 1 सीट और 2024 लोकसभा सीट में पार्टी का खाता तक नहीं खुला।

स्थिति यह है कि मायावती खुद अपनी राज्यसभा की सीट नहीं बचा पाईं। 6 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद वह दोबारा वहां नहीं पहुंचीं।

उपचुनाव 2024 में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। मायावती ने इसके बाद ऐलान कर दिया कि बसपा कभी उपचुनाव में कैंडिडेट नहीं उतारेगी।

बसपा के इस गिरे ग्राफ में दलित वोट का दूसरे दल में शिफ्ट होना माना जाता है। यूपी में दलित वोट 21 फीसदी से ज्यादा है। लेकिन, मौजूदा समय मायावती के पास महज 9.39 फीसदी वोट रह गया है। उसमें भी जाटव समाज को छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर दलित वर्ग का वोटर भाजपा और सपा के साथ चला गया है।

2- दलित वोट बैंक पर बाकी दलों की नजर

बसपा का ग्राफ गिरा, तो दूसरे दलों ने दलित वोट को टारगेट करना शुरू कर दिया। सपा जहां पीडीए की बात कर रही, वहीं बाबा साहेब के अपमान की बात कर कांग्रेस संविधान लेकर भाजपा पर हमलावर है। मायावती बताना चाहती हैं कि वही अंबेडकर की असली वारिस हैं।

वहीं, भाजपा और उसके सहयोगी लगातार इस बात को कहते हैं कि बाबा साहब के सपने को पीएम नरेंद्र मोदी सबसे आगे ले जा रहे हैं। अब इन दलों के सक्रिय होने के बाद बसपा की परेशानी बढ़ती नजर आ रही है। ऐसे में मायावती ने भी 24 दिसंबर को पूरे देश में आंदोलन करने का ऐलान कर दिया है।

बाबा साहब के सबसे ज्यादा अनुयायी

आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अवधेश वर्मा का कहना है- पूरे देश में बाबा साहब के मानने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। ऐसे में सोशल मीडिया पर अमित शाह के बयान का कड़ा विरोध हो रहा है। सभी दल इसका विरोध कर रहे हैं। इसलिए अब उनके विचार पर ही राजनीति करने वाली पार्टी की जवाबदेही सबसे ज्यादा बनती है।

अवधेश वर्मा का कहना है- बाबा साहब के नाम और संवैधानिक व्यवस्था पर जब भी कोई हमला होता है तो इस तरह का विरोध करना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो उनके अनुयायी के अंदर गलत मैसेज जाता है। यहां तक कि बिजली के निजीकरण में सबसे ज्यादा हमला आरक्षण पर हो रहा है।

अमित शाह

अपना सबसे बड़ा वोट बैंक जाने का खतरा

दलित समाज से आने वाले लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत का कहना है- राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा रहती है कि मायावती भाजपा के दबाव में रहती हैं। ऐसे में बसपा का यह मूव कांग्रेस के एजेंडे को खत्म करने के लिए भी हो सकता है। इसके दो मायने हो सकते हैं।

मायावती केवल माफी की मांग कर रही हैं, जबकि दूसरे दल इस्तीफा देने तक की बात करते हैं। ऐसे में बड़ी बात नहीं कि इसमें अमित शाह माफी मांग लें और बसपा लीड कर जाए। बसपा के लीड करने से भाजपा को ही फायदा है। क्योंकि, अगर दलित वोट कांग्रेस या सपा के साथ गया तो भाजपा के लिए ज्यादा नुकसान है।

दूसरा, मौजूदा समय बसपा का सबसे बड़ा वोट बैंक जाटव है। जाटव समाज सबसे ज्यादा अंबेडकरवादी माना जाता है। ऐसे में अगर यह वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो जाता है, तो मायावती के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। मायावती के लिए अब सबसे बड़ा चैलेंज जाटव वोट को भी बचाकर रखना है।

जानकारों का कहना है, मायावती को अगर भविष्य में आगे बढ़ना है तो उनके पास दलित वोट का वापस आना सबसे जरूरी है। ऐसे में बाबा साहब पर बयान के मुद्दे के बहाने बसपा अपना पुराना वोट बैंक पाने की कोशिश करेगी। जिससे यूपी और देश की राजनीति में अपना पुराना रुतबा हासिल कर सके।

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